वांछित मन्त्र चुनें

अग्ने॑ श॒केम॑ ते व॒यं यमं॑ दे॒वस्य॑ वा॒जिनः॑। अति॒ द्वेषां॑सि तरेम॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agne śakema te vayaṁ yamaṁ devasya vājinaḥ | ati dveṣāṁsi tarema ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अग्ने॑। श॒केम॑। ते॒। व॒यम्। यम॑म्। दे॒वस्य॑। वा॒जिनः॑। अति॑। द्वेषां॑सि। त॒रे॒म॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:27» मन्त्र:3 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:28» मन्त्र:3 | मण्डल:3» अनुवाक:2» मन्त्र:3


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

विद्वानों का सङ्ग सबको करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) अग्नि के सदृश पवित्र पुरुषार्थी पुरुष ! आप जैसे (वयम्) हम लोग (वाजिनः) विज्ञानयुक्त (देवस्य) विद्वान् (ते) आपके (यमम्) उत्तम नियम को प्राप्त होने के लिये (शकेम) समर्थ हों और (द्वेषांसि) द्वेषयुक्त कर्मों के (अति) (तरेम) पार पहुँचें, ऐसा यत्न करो ॥३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मोक्ष आदि की जिज्ञासाकारक पुरुषों को चाहिये कि विद्वान् पुरुषों की ऐसे प्रार्थना करें कि जिस प्रकार हम लोग उत्तम नियमों को प्राप्त होकर द्वेष आदि दुष्ट व्यसनों के पार जायें, ऐसी हम लोगों के ऊपर कृपा करिये ॥३॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

विदुषां सङ्गः कर्त्तव्य इत्याह।

अन्वय:

हे अग्ने ! त्वं यथा वयं वाजिनो देवस्य ते यमं प्राप्तुं शकेम द्वेषांस्यतितरेम तथा विधेहि ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) पावकवत्पवित्रपुरुषार्थिन् (शकेम) शक्नुयाम। अत्र विकरणव्यत्ययेन शः। (ते) तव (वयम्) (यमम्) सुनियमम् (देवस्य) विदुषः (वाजिनः) विज्ञानवतः (अति) उल्लङ्घने (द्वेषांसि) द्वेषयुक्तानि कर्म्माणि (तरेम) पारं गच्छेम ॥३॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। जिज्ञासुभिर्विद्वांस एवं प्रार्थनीया यथा वयं सुनियमान्प्राप्य द्वेषादीनि दुर्व्यसनान्युल्लङ्घयेम तथाऽस्माकमुपरि कृपा विधेया ॥३॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. मोक्ष इत्यादीची जिज्ञासा असणाऱ्या पुरुषांनी विद्वान पुरुषांना अशी प्रार्थना करावी, की आम्ही उत्तम नियमांनी वागून द्वेष व दुष्ट व्यसनाच्या पलीकडे जावे अशी आमच्यावर कृपा करा. ॥ ३ ॥